Poos Ki Raat - पूस की रात मानसरोवर लघु कथा by Munshi Premchand audiobook

Poos Ki Raat - पूस की रात मानसरोवर लघु कथा: मानसरोवर कथा संग्रह – भाग १ - मुंशी प्रेमचंद

By Munshi Premchand
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Sahitya Chintan
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पूस की रात मानसरोवर कथा संग्रह – भाग १ मुंशी प्रेमचंद हल्कू ने आकर स्त्री से कहा- सहना आया है, लाओ, जो रुपये रखे हैं, उसे दे दूँ, किसी तरह गला तो छूटे । मुन्नी झाड़ू लगा रही थी। पीछे फिरकर बोली- तीन ही तो रुपये हैं, दे दोगे तो कम्मल कहाँ से आवेगा ? माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी ? उससे कह दो, फसल पर दे देंगे। अभी नहीं । हल्कू एक क्षण अनिश्चित दशा में खड़ा रहा । पूस सिर पर आ गया, कम्मल के बिना हार में रात को वह किसी तरह नहीं जा सकता। मगर सहना मानेगा नहीं, घुड़कियाँ जमावेगा, गालियाँ देगा। बला से जाड़ों में मरेंगे, बला तो सिर से टल जाएगी । यह सोचता हुआ वह अपना भारी- भरकम डील लिए हुए (जो उसके नाम को झूठ सिद्ध करता था ) स्त्री के समीप आ गया और खुशामद करके बोला- ला दे दे, गला तो छूटे। कम्मल के लिए कोई दूसरा उपाय सोचूँगा। मुन्नी उसके पास से दूर हट गयी और आँखें तरेरती हुई बोली- कर चुके दूसरा उपाय ! जरा सुनूँ तो कौन-सा उपाय करोगे ? कोई खैरात दे देगा कम्मल ? न जाने कितनी बाकी है, जों किसी तरह चुकने ही नहीं आती । मैं कहती हूँ, तुम क्यों नहीं खेती छोड़ देते ? मर-मर काम करो, उपज हो तो बाकी दे दो, चलो छुट्टी हुई । बाकी चुकाने के लिए ही तो हमारा जनम हुआ है । पेट के लिए मजूरी करो । ऐसी खेती से बाज आये । मैं रुपये न दूँगी, न दूँगी । हल्कू उदास होकर बोला- तो क्या गाली खाऊँ ? मुन्नी ने तड़पकर कहा- गाली क्यों देगा, क्या उसका राज है ? मगर यह कहने के साथ ही उसकी तनी हुई भौहें ढीली पड़ गयीं । हल्कू के उस वाक्य में जो कठोर सत्य था, वह मानो एक भीषण जंतु की भाँति उसे घूर रहा था । उसने जाकर आले पर से रुपये निकाले और लाकर हल्कू के हाथ पर रख दिये। फिर बोली- तुम

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Summary

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पूस की रात

मानसरोवर कथा संग्रह – भाग १

मुंशी प्रेमचंद

हल्कू ने आकर स्त्री से कहा- सहना आया है, लाओ, जो रुपये रखे हैं, उसे दे दूँ, किसी तरह गला तो छूटे ।

मुन्नी झाड़ू लगा रही थी। पीछे फिरकर बोली- तीन ही तो रुपये हैं, दे दोगे तो कम्मल कहाँ से आवेगा ? माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी ? उससे कह दो, फसल पर दे देंगे। अभी नहीं ।

हल्कू एक क्षण अनिश्चित दशा में खड़ा रहा । पूस सिर पर आ गया, कम्मल के बिना हार में रात को वह किसी तरह नहीं जा सकता। मगर सहना मानेगा नहीं, घुड़कियाँ जमावेगा, गालियाँ देगा। बला से जाड़ों में मरेंगे, बला तो सिर से टल जाएगी । यह सोचता हुआ वह अपना भारी- भरकम डील लिए हुए (जो उसके नाम को झूठ सिद्ध करता था ) स्त्री के समीप आ गया और खुशामद करके बोला- ला दे दे, गला तो छूटे। कम्मल के लिए कोई दूसरा उपाय सोचूँगा।

मुन्नी उसके पास से दूर हट गयी और आँखें तरेरती हुई बोली- कर चुके दूसरा उपाय ! जरा सुनूँ तो कौन-सा उपाय करोगे ? कोई खैरात दे देगा कम्मल ? न जाने कितनी बाकी है, जों किसी तरह चुकने ही नहीं आती । मैं कहती हूँ, तुम क्यों नहीं खेती छोड़ देते ? मर-मर काम करो, उपज हो तो बाकी दे दो, चलो छुट्टी हुई । बाकी चुकाने के लिए ही तो हमारा जनम हुआ है । पेट के लिए मजूरी करो । ऐसी खेती से बाज आये । मैं रुपये न दूँगी, न दूँगी ।

हल्कू उदास होकर बोला- तो क्या गाली खाऊँ ?

मुन्नी ने तड़पकर कहा- गाली क्यों देगा, क्या उसका राज है ?

मगर यह कहने के साथ ही उसकी तनी हुई भौहें ढीली पड़ गयीं । हल्कू के उस वाक्य में जो कठोर सत्य था, वह मानो एक भीषण जंतु की भाँति उसे घूर रहा था ।

उसने जाकर आले पर से रुपये निकाले और लाकर हल्कू के हाथ पर रख दिये। फिर बोली- तुम

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Author Bio: Munshi Premchand

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Available Formats : Digital Download
Category: Fiction/Literary
Runtime: 0.19
Audience: Adult
Language: English