
JIVAN KI SARGAM; SWAR KUCHH MERE, KUCHH TUMHARE
“जीवन की सरगम; स्वर कुछ मेरे, कुछ तुम्हारे
जीवन की सरगम उन अनसुनी आवाजों की गूंज है, जो हर नारी के मन में कहीं न कहीं बसी होती है, कभी प्रेम, पीड़ा में, तो कभी आत्म-खोज की यात्रा में |
यह संग्रह एक साधारण भाषा में, असाधारण भावनाओं को उजागर करता है i
प्रेम, समर्पण, असंतोष, उम्मीद, रिश्तों की परतें और आत्मिक संतुलन की खोज—यह सब समाया है इन पंक्तियों में i
“एहसास, तुम मिले और जिंदगी” कविता में प्रेम और समर्पण की भावनायें उजागर होती हैं वहीँ “हमजोली” तथा “हमसफ़र” में कुछ निराशा, हताशा के भाव सामने आते हैं | “क्यूँ” “जाने क्यूँ” और “मन करता है” कवितायों में नारी के मन में अनेक प्रश्न उठते दिखते हैं |
“वो आसमा अपना“ एवं “किनारे की आस“ जैसी कवितायेँ जीवन में उम्मीद भी जगाती दिखती हैं |
“बूंदे” कविता , केदारनाथ धाम जून२०१३ की आपदा में अपनों को खोने वालो के दुखी मन की व्यथा से प्रेरित है.
“कांच के रिश्ते” तथा “ना अलग करो उन्हें” जैसी कविताओं में कहीं आप जीवन के बदलते संबंधो और रिश्तों के प्रश्नों को समझने की कोशिश अवश्य कर सकेंगे, तो कहीं जीवन जीने की अलग राह पर चल पड़ेंगे |अपने जीवन को खुशहाल बनाना चाहते हैं तो आप इन कविताओं को जरुर पढ़े | ये कविताएँ आपको एक नई सोच और नई दिशा में ले जाने का प्रयत्न है |
इस सरगम की कवितायों के स्वरों के माध्यम से अपने आपसी रिश्तों में उन छोटे-छोटे खुशनुमा पलों को पकड़ना सीखें और आपस में खुश रहने की कोशिश करें, क्यूंकि अक्सर खुशियाँ आपके आस-पास ही होती है |
यदि आप अपने जीवन की भागदोड़ से कुछ पल निकलकर खुद से जुड़ना चाहते हैं, तो यह काव्य-संग्रह आपको अपने ही भीतर की आवाज से मिलाने का आमंत्रण देता है शब्दों की इस सरगम में शायद आपको आपके ही जीवन के कुछ सुर मिल जाएँ i
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